कौन हैं नसीरूद्दीन शाह की पहली बेटी?
अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के दो बेटों इमाद और विवान शाह को तो आपने तस्वीरों के ज़रिए देखा होगा, पर क्या आप जानते हैं कि उनकी पहली संतान एक बेटी है.
बेटी का नाम हीबा है जिसे नसीर ने बरसों तक नहीं अपनाया. इसकी वजह क्या थी और कौन थी वो महिला जिसके साथ नसीर की पहली शादी हुई थी.
इस तरह की कई बातें, जिनके बारे में नसीर के सिवाय कोई नहीं जानता था, वे अब सार्वजनिक हैं.
अपनी आत्मकथा ‘ऐंड देन वन डे- अ मेमुआर’ में उन्होंने ज़िंदगी के उन पहलुओं को खोल कर रखा है, जिस पर इससे पहले शायद ही कभी बात हुई.
'ज़रूरी है कि स्वीकार करूं'
उनके लिए उम्र में ख़ुद से बड़ी पाकिस्तान की रहने वाली परवीन के साथ इश्क़ और बेटी हीबा के जन्म की कहानी को शब्दों में बांधना आसान नहीं रहा होगा, ये समझा जा सकता है.
मेरठ से निकल कर नैनीताल और अजमेर के कैथोलिक स्कूलों से होती हुई ये किताब रंगमंच और मुंबई में स्टारडम की चकाचौंध तक ले जाती है.
इसके रास्ते गुज़रते हैं अलीगढ़ विश्वद्यालय, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान से, जहां से नसीरुद्दीन शाह की क़िस्मत ने करवट ली.
अम्मी के प्यार, अब्बू के साथ तनावपूर्ण रिश्ते की ख़लिश, पहला प्यार, पहली शादी और पहली बेटी को बहुत ईमानदारी से जगह दी है नसीरुद्दीन शाह ने अपनी ज़िंदगी की किताब में.
एक जगह पर वो लिखते हैं, ‘‘मुझे नहीं मालूम मुझे कैसे देखा जाएगा, अगर मैं यह कहूंगा कि मैंने अपनी बच्ची हीबा के लिए लंबे समय तक कुछ भी महसूस नहीं किया, लेकिन यह ज़रूरी है कि मैं आज इस बात को स्वीकार करूं. वो कहीं नहीं थी, ऐसे जैसे उसका अस्तित्व ही नहीं था.’’
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परिवारिक चरित्रों की दिलचस्प चर्चा के साथ इस किताब में ज़िक्र मिलेगा उन निर्देशकों और अभिनेताओं का, जिनके साथ नसीर ने काम किया.
ये हैं- इब्राहीम अल्काज़ी, गिरीश कर्नाड, श्याम बेनेगल, शबाना आज़मी और ख़ासकर ओमपुरी जिनके साथ उनकी दोस्ती अहम रही है.
पिता की इच्छा के ख़िलाफ़ बग़ावत करके अभिनेता बनने निकले नसीर के साथ क्या हुआ जब मुंबई में पैर जमाने की कोशिशें शुरू हुईं.
नसीर लिखते हैं, ''मेरे लिए मेरे पिता के सपने धीरे-धीरे ध्वस्त हो रहे थे. मैं अपने सपनों पर भरोसा करने लगा था.''
एक लाख शब्दों और 315 पन्नों में दर्ज ये आत्मकथा अभिनय के साथ उनके प्रयोग, कामयाबी और नाकामयाबी के दौर, रत्ना पाठक शाह के साथ शादी और उसके बाद की ज़िंदगी तक की कहानी बयां करती हैं.
हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में नसीरुद्दीन शाह ने कहा था कि जितना हो सका मैंने ईमानदार होने की कोशिश की है.
यह किताब आत्मकथा की शक्ल में क्लासिक अभिव्यक्ति कही जा सकती है या नहीं, इस पर चर्चा जल्द करेंगे.