आज आप के सामने पेश है जौनपुर के ज्ञान कुमार जी की लिखी किताब दास्ताँ ए कर्बला के कुछ अंश. श्री ज्ञान कुमार जी बैंक अधिकारी हैं और हिंदी भाषा पे अच्छी पकड़ रखते हैं यह ग्राम सुल्तानपुर दरवेश अली पो० मुरादगंज जौनपुर के निवासी हैं और हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के नवासे इमाम हुसैन (अ.स) के मुरीद हैं और उनका मानना है की यह यह उनपे मौला हुसैन का करम है की दास्ताने कर्बला को वो लिख सके.
कर्बला की कहानी और मकसद ए क़ुरबानी. ..ज्ञान कुमार
दास्ताने कर्बला मैं उन्होंने सबसे पहले इमाम हुसैन (अ.स) के बारे मैं बताया फिर उनकी जंग यजीद से क्यों हुई और कैसे कैसे यजीद ने ज़ुल्म धाये इसका ज़िक्र बखूबी किया है. उन्सको पढने के बाद कोई भी शख्स जो इंसान का दिल रखता है उसकी आँखों मैं आंसू अवश्य आ जाएंगे.
मैं उनकी किताब के एक हिस्से मकसद ए क़ुरबानी को पेश कर रहा हूँ . हजरत इमाम हुसैन (अ.स) ने अपने व अपने इकहत्तर साथियों ,रिश्तेदारों की अज़ीम , बेमिसाल अलौकिक व अदभुद क़ुरबानी पेश करके दुनिया को पैगाम दिया है की:"ए दुनिया के हक परस्तों कभी भी बातिल के आगे सर ख़म ना करना (शीश ना झुकाना ), बातिल चाहे कितना भी ताक़तवर और ज़ालिम क्यों ना हो."
दुनिया काएम होने से लेकर हर युग मैं हमेशा न्याय -अन्याय, सत्य -असत्य ,नेकी-बड़ी ,अच्छाई-बुराई एव हक और बातिल के दरमियान जंग होतो रही है. जिसमें जीत हमेशा न्याय, सत्य ,नेकी, अच्छाई ,एवं हक की ही हुई है. चाहे उसे ताक़त से जीता गया हो या कुर्बानियां दी गयी हों.जिसके लिए इतिहास गवाह है.
हजरत इमाम हुसैन (अ.स) ने कर्बला मैं यजीद जैसे बातिल परस्त (बुराई की राह पे चलने वाला ) फ़ासिक़ को पूरी तरह से बेनकाब करके उसका घिनौना चरित्र दुनिया के सामने दिखा दिया. यजीद ने सोंचा था की अपनी ताक़त व दौलत के ज़ोर से तमाम ज़ुल्म ओ सितम ध कर सत्य को झुकने पे मजबूर कर देगा.
लेकिन ऐसा वो कर ना सका और इमाम हुसैन (अ.स ) ने यजीद के हाथों खुद को बेचने (बैय्यत) से इनकार कर दिया. इस इनकार के बदले यजीद ने कर्बला मैं इमाम हुसैन (अ.स) के ७२ साथियों और रिश्तेदारों, बच्चों को , भूखा , प्यासा शहीद करवा दिया. यजीद के ज़ुल्म की कहानी सुन के आज भी कोई शरीफुल नफ्स अपने बच्चे का नाम यजीद नहीं रखता जबकि नाम ए हुसैन आज हर दुसरे मुसलमान का हुआ करता है.
अब तक हर युग मैं धर्म -अधर्म के युद्ध हुए हैं. त्रेता युग मैं राम और रवां का, द्वापर युग मैं कृष्ण और कंस का और महाभारत काल मैं अर्जुन ने कौरवों का युद्ध.कर्बला भी धर्म और अधर्म के लिए घटित हुई थी जिसमें यजीद जैसा अधर्मी शासक ने महान धर्म परायण व पवित्र शक्सियत का क़त्ल कर के दुनिया के सामने अपनी हठधर्मिता एवं अविजेता का प्रदर्शन करना चाहता था.
आज १४०० साल बाद भी इमाम हुसैन की इस क़ुरबानी जो मुहर्रम की दस तारिख सन ६१ हिजरी मैं हुई थी सभी धर्मो के लोग याद करते हैं.
" दुनिया के किसी भी दीं धर्म की बुनियाद सत्य -न्याय एवं मानवता पर ही आधारित है. सभी धर्मो का सन्देश है की दुनिया मैं अमन और शांति काएम रखी जाए और सभी को जीने के सामान अधिकार व अवसर प्रदान किए जाएं, जिस से इंसानी वजूद दुनिया मैं हमेशा काएम रहे तथा आपस मैं भाईचारा बरक़रार रहे.
इसी मूल मंत्र के कारण इमाम हुसैन (अ.स) ने पना सब कुछ कर्बला मैं लुटा दिया तथा अपना भरा घर अपने नाते रिश्तेदारों समेत खुद को कुर्बान कर दिया.
आएये हम सभी मिलकर इस ईश्वरीय पैगाम पे ग़ौर ओ फ़िक्र करें तथा कर्बला की घटना से सीख लें जिससे दुनिया मैं फैल रहे ज़ुल्म ओ सितम ,दुराचार,अनाचार,नाते रिश्तों मैं हो रही गिरावट ,बेगुनाहों की हो रही हत्याओं एवं मानवता पे हो रहे हमलों को रोका जा सके. अवन दुनिया को आतंकवाद के चंगुल से बचने का संकल्प लें.
यही है हजरत इमाम हुसैन (.स) से सच्ची मुहब्बत एवं उनके पैगाम व क़ुरबानी में हिस्सेदारी एवं अल्लाह (इश्वर) के बताए हुए अहकाम व आदेशों का पालना.
नोट: किताब पाने के लिए संपर्क करें
ज्ञान कुमार
जौनपुर
9721275498
Daastaan e Shaeedaan e karbala -
मुहर्रम एक जायज जंग ...इंसानियत को इन्तिहाँ तक कायम रखने की कोशिश की कहानी है कर्बला की जंग ......इस्लाम के इतिहास में जिस जंग को याद किया जाता है उस शहादतों से भरी जंग के इतिहास का एक पहलू अतीत में कहीं खो न जाय इस हेतु इस जानकारी को साझा करना जरुरी है अमर उजाला कानपुर अंक एक दिसम्बर २०११ के अनुसार भारत के शूरवीर ब्राह्मणों ने इस पवित्र लड़ाई में हुसेन का साथ दिया था..... ?????????? कर्बला की जंग में इमाम हुसेन आली ,मकाम की तरफ से जंग करते हुए ब्राह्मणों ने भी क़ुरबानी दी थी यजीदी फ़ौज को नाको चने चबवाने वाले ब्रह्मण सिद्ध दत्त के सात बेटे कर्बला के मैदान में शहीद हुए इस जंग में शहादत हासिल करने वाले मोहयाली ब्राह्मणों में आज भी बहुतेरे हुसैनी ब्रह्मण कहलाते है तवारीख के अनुसार दत्त और मोहयाली ब्रह्मण इराक के कुफे में रहते थे और इन्ही के बुलावे पर हुसैन की मदद करने के लिए भारत के पंजाब प्रान्त से सैकड़ो ब्राम्हण लड़ाके कर्बला भी पहुचे थे लेकिन तब तक जंग समाप्त हो चुकी थी .............इस इतिहास से एक बात तो आइना होती है की इस्लाम की बुनियाद में ब्रह्मणों की क़ुरबानी भी दफ़न है
जवाब देंहटाएंहर साल मुहर्रम का चाँद दिखाई देते ही ,हर तरफ कर्बला, या हुसैन की सदा सुनाई देने लगती है, लोगों की ज़बान पे पैगाम है इंसानियत,सब्र ए हुसैन (ए.स) और कुर्बानियों की कहानी फिर से सुनाई देने लगती है. लेकिन कहीं खो जाती है ब्राह्मणों की क़ुरबानी ऐसी सूरत मैं ये जानकारी अपनी अलग अहमियत रखती है