रायपुर
कोरबा के एक किसान के लिए मुआवजे का इंतजार इतना लंबा हो गया कि उसने तनाव में आकर आत्महत्या कर ली। यह मामला है छत्तीसगढ़ के कोरबा का, जहां 35 साल के किसान जगेंद्र सिंह की फसल बीते साल नवंबर में जंगली हाथियों के रौंदने की वजह से बर्बाद हो गई थी। 9 एकड़ में फैली फसल के बर्बाद होने के बाद जगेंद्र ने वन विभाग में शिकायत दर्ज कराते हुए मुआवजे की मांग की थी।
आमतौर पर ऐसी स्थिति में मुआवजा 10 दिनों के अंदर दे दिया जाता है, लेकिन जगेंद्र को मुआवजा आठ महीने बाद भी नहीं मिला। इससे हताश होकर जगेंद्र ने पेस्टीसाइड खा लिया और हॉस्पिटल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। शुक्रवार को पोस्टमॉर्टम के बाद जगेंद्र की मौत का कारण जहर ही बताया गया। जगेंद्र के परिवार के मुताबिक एक बार फसल खराब हो जाने के बाद दोबारा खेती करने के लिए उसने ढाई लाख का कर्ज भी ले लिया था।
जगेंद्र के परिवार ने बताया कि जगेंद्र को 7,2000 रुपए प्रति एकड़ का नुकसान हुआ था, लेकिन सरकार की ओर से उसे सिर्फ 800 रुपए प्रति एकड़ की दर से ही मुआवजा मिलना था। कोरबा के डिविजनरल फॉरेस्ट ऑफिसर जेआर नायक ने बताया कि जगेंद्र का मुआवजा अटका हुआ था और उसे सिर्फ चार एकड़ की खराब हुई फसल के लिए मुआवजा दिया जाना था। ऐसे में जगेंद्र को सिर्फ 3200 रुपए ही मिलते।
सूत्रों के मुताबिक हाथियों के पैरों तले कुचले जाने की वजह से बर्बाद हुई फसल के 63 अन्य भुक्तभोगी किसानों को भी अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। आमतौर पर वन विभाग से मिलने वाले मुआवजे में ऐसी लेट-लतीफी होती रहती है।
इस खबर को इंग्लिश में पढ़ने के लिए क्लिक करें: Compensation drives farmer to suicide
कोरबा के एक किसान के लिए मुआवजे का इंतजार इतना लंबा हो गया कि उसने तनाव में आकर आत्महत्या कर ली। यह मामला है छत्तीसगढ़ के कोरबा का, जहां 35 साल के किसान जगेंद्र सिंह की फसल बीते साल नवंबर में जंगली हाथियों के रौंदने की वजह से बर्बाद हो गई थी। 9 एकड़ में फैली फसल के बर्बाद होने के बाद जगेंद्र ने वन विभाग में शिकायत दर्ज कराते हुए मुआवजे की मांग की थी।
आमतौर पर ऐसी स्थिति में मुआवजा 10 दिनों के अंदर दे दिया जाता है, लेकिन जगेंद्र को मुआवजा आठ महीने बाद भी नहीं मिला। इससे हताश होकर जगेंद्र ने पेस्टीसाइड खा लिया और हॉस्पिटल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। शुक्रवार को पोस्टमॉर्टम के बाद जगेंद्र की मौत का कारण जहर ही बताया गया। जगेंद्र के परिवार के मुताबिक एक बार फसल खराब हो जाने के बाद दोबारा खेती करने के लिए उसने ढाई लाख का कर्ज भी ले लिया था।
जगेंद्र के परिवार ने बताया कि जगेंद्र को 7,2000 रुपए प्रति एकड़ का नुकसान हुआ था, लेकिन सरकार की ओर से उसे सिर्फ 800 रुपए प्रति एकड़ की दर से ही मुआवजा मिलना था। कोरबा के डिविजनरल फॉरेस्ट ऑफिसर जेआर नायक ने बताया कि जगेंद्र का मुआवजा अटका हुआ था और उसे सिर्फ चार एकड़ की खराब हुई फसल के लिए मुआवजा दिया जाना था। ऐसे में जगेंद्र को सिर्फ 3200 रुपए ही मिलते।
सूत्रों के मुताबिक हाथियों के पैरों तले कुचले जाने की वजह से बर्बाद हुई फसल के 63 अन्य भुक्तभोगी किसानों को भी अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। आमतौर पर वन विभाग से मिलने वाले मुआवजे में ऐसी लेट-लतीफी होती रहती है।
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