हल चला के खेतों को, मैंने ही सजाया है...किसान गीत
ग्राम-ककराना, जिला-अलीराजपुर,(मप्र) से अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस के उपलक्ष्य में स्कूल की छात्राएं एक गीत प्रस्तुत कर रही हैं:
हल चला के खेतो को, मैंने ही सजाया है-
गेहूं चावल मक्का के, दाने को उगाया है-
चुल्हा भी बनाया मैंने, धान भी पकाया है-
रहूं क्यूँ भूखे पेट रे,कि मेरे लिए काम नहीं-
रहूं क्यूँ भूखे पेट रे...
मिट्टी की खुदाई की, भट्टी को जलाया है-
ईंटों को पकाया रे, बंगला बनाया रे-
संसार का हर एक खम्भा,मैंने ही उठाया रे-
सोएं क्यों फुटपाथ पे, कि मेरे लिए काम नहीं-
खाद्य को बनाया मैंने, मिलों को चलाया रे-
तन-मन जोड़ के, कपड़ा बनाया रे-
सपने के रंगों से,उनको सजाया है-
मुझे कफ़न नहीं रे, कि मेरे लिए काम नहीं-
मुझे कफ़न नहीं रे...
ट्रेन को बनाया मैंने,सडकों को बिछाया रे-
हवा में उड़ाया रे, चाँद से मिलाया रे-
नाव को बनाया मैंने, पानी पे चलाया रे-
मेरी न जिंदगी चले, कि मेरे लिए काम नहीं
मेरी न जिंदगी चले...
स्वराज के ताज को, मैंने ही बनाया रे-
मंदिरों को मस्जिदों को, मैंने ही सजाया रे-
मंदिर की तार को, मांदर को बजाया रे-
मेरा संगीत कहाँ रे, कि मेरे लिए काम नहीं-
मेरा संगीत कहाँ रे...
सपने सजाएंगे, जिंदगी बनाएंगे-
उंगलियों को मोड़के,हाथों को उठाएंगे-
आसमान को छुएंगे, जिन्दाबाद गाएंगे-
गाएंगे जब तक रे, कि जब तक काम नहीं-
लड़ेंगे जब तक रे, कि तब तक काम नहीं-
लड़ेंगे जब तक रे...